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बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

राजस्थान : सूखा एवं अकाल

राजस्थान : सूखा एवं अकाल
☑ जेम्स टॉड ने 11वीं सदी में पड़ने वाले एक भीषण अकाल का वर्णन किया जिसमें लगातार 12 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई |
☑ चालीसा का अकाल : 1783 ई० ( विक्रम संवत 1840 ) में पड़े अकाल को कहा जाता है |
☑ पंचकाल : 1812-13 ई० में पड़े अकाल को कहा गया है |
☑ त्रिकाल : 1868-69 ई० में पड़े अकाल को कहा गया है |
☑ छपनिया अकाल : 1899-1900 ई० ( विक्रम संवत 1956 ) में पड़े अकाल को कहा गया |
👉राजस्थान देश का सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र है। यहाँ अकाल एक बड़ी समस्या है। अकाल की वजह से जहाँ कृषि उत्पादन प्रभावित होता है वहीं चारा सहित अन्य सह-कृषि कारोबार भी प्रभावित होते हैं। मसलन यहाँ कृषि के साथ ही पशुपालन मुख्य पेशा है। गाय, भैंस, भेड़, बकरी पालन से लोगों की जीविका जुड़ी हुई है। ऐसे में, जब बारिश नहीं होती है तो लोगों को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ता है। इससे भी बड़ा संकट पशुओं के चारे का हो जाता है।

👉राजस्थान की स्थिति पर गौर करें तो राजस्थान के निर्माण के बाद वर्ष 1959-60, 1973-74, 1975-76, 1976-77, 1990-91 व 1994-95 को छोड़कर हर साल यह क्षेत्र सूखा एवं अकाल प्रभावित रहा है। 1959 के अकाल में प्रदेश की लगभग समस्त जनसंख्या इससे प्रभावित हुई। अरावली पर्वत श्रेणियों द्वारा दो पृथक भागों में विभाजित राज्य के उत्तर-पश्चिम भाग में, जो राज्य का सत्तर प्रतिशत क्षेत्रफल है, बहुत क्षीण, छितराई हुई एवं कम वर्षा होती है। प्रत्येक प्राकृतिक आपदा से मानव एवं प्राणी जगत के साथ भौतिक सम्पदाओं का भी नुकसान होता है। यहाँ के लोग भोजन, पानी, आश्रय, कपड़े, दवाई एवं सामाजिक सुरक्षा हेतु बाह्य स्रोतों से सहायता के मोहताज हो जाते हैं।
👉राजस्थान में घरेलू उत्पादन का 42 से 45 प्रतिशत भाग कृषि एवं पशुपालन गतिविधियों की देन है, जिस पर 70 प्रतिशत जनसंख्या निर्भर करती है। कृषि यहाँ मुख्य रूप से वर्षा पर ही निर्भर है। कुल जोत योग्य 2,06,59,787 हेक्टेयर भूमि में से केवल 66,75,835 हेक्टेयर भूमि ही सिंचित है।
#तब इंसान ही इंसान को खाने को हुआ था मजबुर

👉1899 का विभत्स काल
" छप्पना_रो_काळ अर मारवाड री दशा "
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प्रकृति के प्रकोप को मनुष्य सदियों-सदियों से ही झेलता आया हैं | इसका असर कभी कम तो कभी-कभी क्षेत्र के सम्पुर्ण जनजीवन को मौत के मुंह तक ले जाना वाला रहा हैं |
ऐसा ही प्रकृति का प्रकोप #सन्1899 में हुआ था | जिसे 'छप्पना रो काळ' कहा जाता हैं | आज भी उस काळ में हुई दशा के बारे में सुनाने वाले बुजुर्ग कांपने लगते हैं | क्योकि उनके बाप-दादा जो उस काळ के प्रकोप से येन-केन प्रकारेण बच गये थे, वो उन्हें काळ में हुई दशा के बारे में बताते थे |
इस वर्ष उत्तरी भारत के अन्य प्रांतो में भी घोर अकाल था | सामान्यत: मारवाड के लोग विशेषकर कृषक व पशुपालक अपने परिवार व पशुओ सहित अकाल के समय मालवा, उत्तर प्रदेश व सिंध की ओर चले जाते थे | लेकिन इस वर्ष यहां भी अकाल था, अतः इन्हें निराश होकर वापस लौटना पडा़ | लगभग चौदह लाख मवेशी मर गये, जो यहां के मवेशीयों की आधी संख्या थी | राज्य सरकार ने काफी चारा व धान बाहर से मंगवायां, लेकिन यातायात की पर्याप्त सुविधाएं न होने के कारण काफी मवेशी व मनुष्य मर गये | कहा जाता हैं कि इस काळ का इतना प्रकोप हुआ की झोपडी से लेकर महल के निवासी सडको पर आ गये और दानें-दानें के मोहताज हो गये | ये काल सब से लिए आफत भरा था | राज्य सरकार ने इस वर्ष लगभग सवा छत्तीस लाख खर्च कीये | राज्य ने अकाल के समय तथा उसके बाद के प्रभाव को दूर करने के लिए अंग्रेजी सरकार से तीस लाख रूपये का कर्जा लीया था | राज्य की आर्थिक स्थति काफी गिर गई | मंहगाई लगभग 25 प्रतिशत तक बढ गई थी | जोधपुर शहर में 25 अगस्त, 1899 को अनाज के भाव इस प्रकार हो गये- गेहूं 6सेर , बाजरी 6.5 सेर, जवार 8सेर, मूंग 4 सेर व घास 11 सेर तक हो गई थी | भयंकर अकाल के कारण जोधपुर में लूटखसोट चालू हो गई थी | इस कारण सभी महकमों की तिजोरियां महकमा खास में रखवाई गई थी | और इस तरह मई-जून 1900 में गर्मी की अधिकता के कारण तथा अकाल से कमजोर हुएं लोगो को हैजा का शिकार होना पडा़ | हजारो लोग हैजे के कारण मर गये | इस वर्ष वर्षा भी अधिक हुई व खेतो में फसलें भी अच्छी हुई, लेकिन फसल काटने वाले ही नही थे | इसलिए इस वर्ष भी धान की कमी रही | अकाल, हैजा व मलेरिया के प्रकोप के कारण 1901 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 19,38,565 रह गई | जबकि 1891 की जनगणना में मारवाड की जनसंख्या 25,28,178 थी | इस प्रकार 1899 व 1900 इन दो वर्षो में यहां की सामाजिक व आर्थिक स्थति अत्यंत दयनीय हो गई थी |
इसी वर्ष जोधपुर महाराजा सरदार सिंह जी ने अपनी जनता को अकाल से राहत व रोजगार देने के लिए बाडमेंर-बालोतरा 60 मील रेल लाईन चालु करवाई गई | इतनी बडी रेल लाइन चालू करने की अनुमती अंग्रेजी सरकार ने पहली बार एक देशी रियासत को दी थी | इस अकाल में जोधपुर महाराजा ने अपनी प्रजा के लिए धान के भंडार खोल दिये थे, लेकिन भयंकर अकाल में कुछ ही समय में चौतरफा त्राही-त्राही मच गई |
इस काळ को लेकर उस समय की दशा को महाकवि ऊमरदान ने इस तरह बताया -
"माणस मुरधरिया माणक सूं मूंगा !
कोडी कोडी़ रा करिया श्रम सूंगा !
डाढी मुंछाला डळियां में डळिया !
रळिया जायोडा़ गळियां में रूळिया !
आफत मोटी ने रैय्यत रोवाई !
अर्थात मरूधर के मनुष्य (मारवाडी) जो मणिक और मुंगा आदि रत्नों के समान महंगे थे, जो एक-एक कोडी़ को मजदुरी करते दिखाई दिये | गर्व भरी डाढी- मुंछों वाले टोकरी उठाते थे | महलों में पैदा होने वाले गलियों में भटक रहे थे | वह छप्पन का समय भारी आफत के साथ आया ! प्रजा रोटी-रोटी को रोती रही |
कहते हैं उस वक्त धान की अत्यंत कमी के कारण नीम व खेजडी की साल तक खाने को मजबुरी आ पडी थी | इस बारे में मैंने गांव के बुजुर्गों से जानकारी ली, तो बताया की उनके पुर्व के बुजुर्ग जो उस काळ को चीर कर बाहर निकले थे | वो बताते थे की "छप्पने" के समय लोगो के पास पैसे व सोने चांदी की मुहरे भी थी, लेकिन वो भी इधर-उधर लेकर घुमते रहे | धान की इतनी कमी थी कि स्वर्ण मुहरो के बदले भी कोई धान देने को तैयार नही था | क्योकि जिनके पास धान था वो खुद चिंतित थे, कि न जाने काळ कीतना लंबा चलेगा |
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छप्पनियां काळ के बारे में बुजुर्गों से सुने अनुभव शेयर करते हुए मंगलाराम बिश्नोई बताते हैं कि -
" लोग अनाज की पोटली हांडी में घुमाकर उसे 'अन्नवाणी' बना देते और उस पानी में खेजडी के 'छोडा ' (छाल) उबाल कर खाते |
लोग इतने कमजोर पड गये थे कि घरों में झोंपडों में अंदर 'वळों" से रस्सी लटकाये रखते और उसे पकड कर ही खडे हो पाते थे |
एक वीभत्स किस्सा भी है-
" एक माँ ने कैरडे के मळे में अपनी संतान को जन्म देकर खुद ही खा लिया |"
और मंगलाराम जी कहते हैं कि मारवाड की मानवता को झकझोर कर रखने वाली इस छप्पनिया की विभीषिका के बारे में किसी साहित्यकार, कवि, ख्यात लेखक की कलम नहीं चली, न ही वाणी में सरस्वती विराजी |
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आज जब हम प्रकृति के छोटे-छोटे प्रकोप से डर व सहम जाते हैं | तब बुजुर्गो से सुनते आये उस छप्पने काळ की याद अनायास ही आ जाती हैं | क्या दौर रहा होगा ? जब सब तरफ त्राही-त्राही मची होगी |
खैर प्रकृती करे ये काळ व ये आपदाये कभी ना आये |
Q. 1. गत तीन दशकों में राजस्थान में 90 प्रतिशत से अधिक गाँव किस कृषिगत वर्ष में अप्रत्याशित अकाल एवं सूखे पीड़ित हुए ?
   (1) 1987-88
   (2) 2000-01
   (3) 2002-03 ✔
   (4) 2009-10
2. राजस्थान के किस जिले में सबसे अधिक वर्षा होती है ?
   (1) सिरोही
   (2) कोटा
   (3) चित्तौड़गढ़
   (4) झालावाड़ ✔
3. राजस्थान में कम वर्षा का कारण अरावली पर्वतमाला की निम्न में से कौन-सी स्थिति के कारण है ?
   (1) इसका मानसून के समानान्तर होना ✔
   (2) मानसून दिशा के विपरीत होना
   (3) श्रृंखला में कटाव होना
   (4) श्रृंखला का वनस्पति विहीन होना
4. जिस जिले की वार्षिक वर्षा में विषमता का प्रतिशत सर्वाधिक है, वह है -
   (1) बाड़मेर
   (2) जयपुर
   (3) जैसलमेर ✔
   (4) बांसवाड़ा
5. राजस्थान में बहुधा सूखा एवं अकाल पड़ने का आधारभूत कारण है
   (1) अरावली का दक्षिण - पश्चिम से उत्तर - पूर्व की ओर प्रसार
   (2) अनियमित, अपर्याप्त एवं अनिश्चित वर्षा
   (3) मिट्टी एवं वनों का अवक्रमण
   (4) विवेकहीन एवं अवैज्ञानिक ढंग से पानी का उपयोग
6. प्राकृतिक आपदा सहायता कोष की स्थापना किस वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर की गई?
   (1) आठवें
   (2) नवें ✔
   (3) दसवें
   (4) सातवें
7. नवें वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर प्राकृतिक आपदा सहायता कोष की स्थापना किस वर्ष की गई?
   (1) 1989-90
   (2) 1990-91 ✔
   (3) 1991-92
   (4) 1994-95
8. सुखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम में किए जाने वाले कार्य है -
   (1) भूमि विकास
   (2) भू संरक्षण
   (3) वन विकास
   (4) उपर्युक्त सभी ✔
9. सूखे एवं अकाल की समस्या का अल्पकालीन समाधान है -
   (1) सिंचाई व्यवस्था का विस्तार
   (2) अकाल राहत कार्य ✔
   (3) विभिन्न उद्योगों का विस्तार
   (5) उपर्युक्त सभी
10. सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम किस वर्ष शुरू हुआ?
   (1) 1972-73
   (2) 1971-72
   (3) 1974-75 ✔
   (4) 1979-80
11. राजस्थान में अकाल से संबंधित कहावत "तीजोकुरियो आठवों काल" में "कुरिया" शब्द का अर्थ है -
   (1) अर्द्ध अकाल ✔
   (2) पूर्ण अकाल
   (3) त्रिकाल
   (4) इनमें से कोई नहीं
12. राजस्थान में अकाल का प्राकृतिक कारण है -
   (1) उच्च तापमान
   (2) वर्षा की अपर्याप्तता एवं अनियमितता
   (3) नियतवाही नदियों का अभाव
   (4) उपर्युक्त सभी ✔
13. राजस्थान में सूखे एवं अकाल का मानवीय कारण है -
   (1) भू-जल का अंधाधुंध विदोहन
   (2) पारिस्थितिकी असंतुलन
   (3) वनों की अनियंत्रित कटाई
   (4) उपर्युक्त सभी ✔
14. राजस्थान में सूखे एवं अकाल का आर्थिक कारण है -
   (1) पशुपालन की पिछड़ी दशा
   (2) सिंचाई के साधनों का अभाव
   (3) अनुत्पादक जनसंख्या का बढ़ता बोझ
   (4) उपर्युक्त सभी ✔
15. राजस्थान में निरन्तर पड़ने वाले 'सुखे एवं अकाल' का प्रमुख कारण है -
   (1) मृदा अपरदन
   (2) वनों का अवक्रमण
   (3) जल का अविवेकपूर्ण उपयोग
   (4) अनियमित वर्षा ✔
16. राजस्थान का कौनसा क्षेत्र सूखे और अकाल का स्थायी क्षेत्र है?
   (1) पूर्वी
   (2) उत्तरी
   (3) पश्चिमी ✔
   (4) दक्षिणी
17. राजस्थान में गंभीर सूखे की निरन्तरता किन जिलों में पाई जाती है?
   (1) गंगानगर, बीकानेर
   (2) बीकानेर, बाड़मेर
   (3) बाड़मेर, जैसलमेर ✔
   (4) जोधपुर, बीकानेर
18. 20 वीं शताब्दी में सर्वाधिक भीषण अकाल का वर्ष रहा -
   (1) 1982
   (2) 1984
   (3) 1987 ✔
   (4) 1989
19. छप्पनिया अकाल किस वर्ष पड़ा?
   (1) 1952 में
   (2) 1954 में
   (3) 1956 में ✔
   (4) 1966 में
20. 'सहसा मूदसा' का अकाल किस वर्ष पड़ा?
   (1) 1842-43 ✔
   (2) 1872-73
   (3) 1956-57
   (4) 1987-88
21. वर्तमान राजस्थान में सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम कितने जिलों में चल रहा है?
   (1) 10
   (2) 11 ✔
   (3) 12
   (4) 14

21 टिप्‍पणियां:

  1. Questions no 20 me Ad/Bc nahi bataya h

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  2. छप्पनिया आकाल 1899 में पड़ा था

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  3. छपपनिया अकाल 1956 या 1899 से 1900
    कोनसा सही है

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  4. छपनिया अकाल : 1899-1900 ई० ( विक्रम संवत 1956 ) में पड़े अकाल को कहा गया |

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  5. छपनिया अकाल : 1899-1900 ई० ( विक्रम संवत 1956 ) में पड़े अकाल को कहा गया |

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  6. छप्पनिया अकाल में केवल राजस्थान राज्य को ही मुसीबत का सामना करना पड़ा था या पूरे भारत को

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  7. छपनिया अकाल 1899 में पड़ा था

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  8. सन् 1899 होगा और विक्रम संवत् 1956 होगा ।

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  9. छपनिया का अकाल विक्रमी सम्वत 1956 में पड़ा था जिसमें सबसे ज्यादा समस्या खाद्यान्न व पशुओं के चारे की रही थी।

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  10. सभी लोगो ने खेजडी की छाल पीसकर खाई थी|

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